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राष्ट्रीय संगोष्ठी, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय

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शारीरिक क्षमताओं का विस्तार है इलेक्ट्रानिक मीडिया

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लखनऊ 07 अक्टूबर, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत आज दो दिवसीय इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन लखनऊ विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में हुआ। कार्यशाला के तृतीय तकनीकी सत्र में साहित्यकार एवं मीडिया विशेषज्ञ उषा सक्सेना ने कहा कि रेडियो शब्दों का माध्यम है जिससे अंधों का थियेटर कहा जाता है। यहां सुनना, देखना, रोना, हंसना सभी क्रियायें, वस्त्र, साज-सज्जा, मौसम शब्दों के द्वारा ही बताये जाते हैं। रेडियो नाटक लिखने के लिए अनिवार्य है कि सर्वप्रथम हम अपने लक्ष्य श्रोताओं के वर्ग विशेष को पहचाने। यह ध्यान रखने योग्य है कि रेडियो पर दृश्य सज्जा का कार्य संगीत और ध्वनि के माध्यम से किया जाता है। अतः दृश्यों को गतिशील बनाने के लिए संगीत का चुनाव आवश्यक है। मीडिया विशेषज्ञ राकेश निगम ने विकास संचार के बारे में बताते हुए कहा कि आज विकास संचार ने मानव जाति को आधुनिक बना दिया है। मीडिया का सामाजिक सरोकारों से जुड़ाव होना चाहिए। श्री निगम ने कहा कि कार्यक्रमों के निर

समाचार के प्रस्तुतीकरण में संयमित भाषा जरूरी

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लखनऊ 06 अक्टूबर, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत आज दो दिवसीय इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन लखनऊ विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में हुआ। कार्यशाला के अध्यक्ष माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रो0 रामजी त्रिपाठी ने कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया एक विशेष धारा है जिसमें अनन्त संभावनाएं हैं। इसमें कार्य करने के लिए जुनून की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि आज इलेक्ट्रानिक चैनलों पर जो कार्यक्रम दिखाये जाते हैं उन कार्यक्रमों को परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता है यह दुखद है। इसमें किसी प्रकार की आचार संहिता नहीं है जिससे इन पर अंकुश लगाना मुश्किल है लेकिन अपनी सोच से फूहड़ कार्यक्रमों को रोका जा सकता है। आज बड़े व्यावसायी या राजनेता चैनल तो स्थापित कर ले रहे हैं परन्तु वह चैनल को चलाने हेतु अपनी संस्कृति को छोड़कर नकारात्मक कार्यक्रमों को प्रसारित कर रहे हैं ताकि उनका चैनल प्रतिस्पर्धा में आगे ह

इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत दिनांक 06 और 07 अक्टूबर 2012 को दो दिवसीय इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में किया जा रहा है। इलेक्ट्रानिक मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला का स्वागत भाषण प्रो0 कैलाश देवी सिंह अध्यक्ष हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा किया जायेगा। कार्यशाला में अध्यक्षीय उद्बोधन- प्रो0 बी0 के0 कुठियाला, कुलपति, (माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता, विश्वविद्यालय, भोपाल, मध्यप्रदेश), मुख्य अतिथि का उद्बोधन श्रीयुत् रामजी त्रिपाठी, प्रोफेसर, इलेक्ट्रानिक मीडिया (माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल, मध्यप्रदेश) विशिष्ट अतिथि का उद्बोधन डाॅ0 सतीश ग्रोवर, पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक(दूरदर्शन,लखनऊ केन्द्र) तथा विशिष्ट समागत- श्री मुकेश कुमार, चैनल प्रमुख, (न्यूज एक्सपे्रस, नई दिल्ली),श्रीयुत् हितेश शंकर, उप सम्पादक(हिन्दुस्तान,नई दिल्ली)और विषय परिवर्तन प्रो0सूर्यप्रसाद दीक्षित, (कृतकार्य आचा

जन माध्यमों का चुनाव विज्ञापनों की सबसे बड़ी चुनौती

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16 सितम्बर, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत दो दिवसीय ‘प्रिन्ट मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला’ का समापन आज दिनांक 16 सितम्बर, 2012 को लखनऊ विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में किया गया। कार्यशाला के दूसरे दिन विशेषज्ञों ने समाचार लेखन की प्रक्रिया और चुनौतियों पर प्रकाश डाला। हिन्दुस्तान समूह के एशोसियेट एडीटर श्री हरजिन्दर ने बताया कि समाचार लेखन का कार्य, कहानी लेखन की तरह किया जाता है। कहानी में भी पात्र, परिस्थितियां होती हैं और पत्रकारिता में भी। किन्तु कहानी में कल्पना का तत्व विद्यमान होता है और पत्रकारिता मे यथार्थ का तत्व। समाचार लिखने के लिए अभ्यास करना बहुत आवश्यक होता है। उन्होंने अच्छा समाचार लिखने का तरीका बताते हुए कहा कि ऐसे शब्दों का चुनाव करें जो आठ अक्षरों से अधिक न हों, एक वाक्य में आठ शब्द से अधिक शब्द न हों, एक पैराग्राॅफ में आठ वाक्य से ज्यादा वाक्य न हों तथा एक स्टोरी में आठ पैराग्राफ से ज्यादा पैराग्राफ न हों। हर वाक्य पहले वाक्य से जुड़ा होना चाहिए

पत्रकारिता शिक्षा समाज को रास्ता दिखाने के लिए है न कि आजीविका के लिए

लखनऊ 15 सितम्बर, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत आज दिनांक 15 सितम्बर, 2012 को दो दिवसीय ‘प्रिन्ट मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला’ का उद्घाटन लखनऊ विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में किया गया।     उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो0 सरला शुक्ल ने कहा कि त्याग और तपस्या का दूसरा नाम ही पत्रकारिता है। स्वतंत्रता के पूर्व से ही हिन्दी पत्रकारिता को बहुत ही संघर्ष करना पड़ा तब आज पत्रकारिता इस आधुनिक स्वरूप में है। पत्रकारिता से ही हिन्दी भाषा का स्वरूप बन और बिगड़ रहा है। आज पत्रकारिता भाषा को नया आयाम देते हुए समाज को नई दिशा दे रही है। पत्रकार का दायित्व सिर्फ सूचना संग्रह करना ही नहीं है उसके द्वारा उसे उचित और अनुचित बातों को अलग करना भी है। पहले पत्रकारिता का व्यावसाय उद्योगपतियों द्वारा किया जाता था परन्तु आज राजनीतिज्ञों द्वारा पत्रकारिता का व्यावसाय किया जा रहा है जिससे पत्रकारिता दिशाहीन हो रही है और निष्पक्ष पत्रकारिता नहीं हो पा रह

प्रिन्ट मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत दिनांक 15 और 16 सितम्बर 2012 को दो दिवसीय प्रिन्ट मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में किया जा रहा है। प्रिन्ट मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला का स्वागत भाषण प्रो0 कैलाश देवी सिंह अध्यक्ष हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा किया जायेगा। कार्यशाला में मुख्य अतिथि का उद्बोधन श्रीयुत् नवीन जोशी कार्यकारी संपादक, हिन्दुस्तान, विशिष्ट अतिथि का उद्बोधन श्री हरजिन्दर, एसोसिएट एडीटर, हिन्दुस्तान समूह, नई दिल्ली तथा विशिष्ट समागत-श्रीयुत् दिलीप अवस्थी, स्थानीय, संपादक दैनिक जागरण लखनऊ और अध्यक्षीय उद्बोधन-प्रो0 सरला शुक्ल, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ द्वारा किया जायेगा। कार्यशाला के माध्यम से प्रिन्ट मीडिया की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने ‘प्रिन्ट मीडिया प्रशिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया है। जीवन के हर क्षेत्र मंे मीडिया प्रसंागिक हो गया है, इसलि

पी-एच0डी0 की मौखिकी सम्पन्न

03 सितम्बर, 2012। हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय में श्री शोभालाल मौर्या की पी-एच0डी0 की मौखिक परीक्षा सम्पन्न हो गया। मौर्या जी ने ‘गुरु प्रसाद सिंह ‘मृगेश’ के काव्य में लोक संस्कृति’ विषय पर प्रो0 हरिशंकर मिश्र के निर्देशन में अपना शोध कार्य पूर्ण किया।

अभिव्यक्ति का सर्वोच्च माध्यम हिन्दी भाषा

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लखनऊ: 02 सितम्बर, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की ‘‘उत्कृष्ट केन्द्र योजना’’ के अंतर्गत आयोजित दो दिवसीय ‘हिन्दी में विज्ञान लेखन’ कार्यशाला के दूसरे दिन तृतीय सत्र मंे प्रो0 कृष्ण गोपाल दुबे ने हिन्दी में वैज्ञानिक शोध लेखन तकनीक के बारे में बताते हुए कहा कि शोध लेखन में वैज्ञानिक सोच होना बहुत आवश्यक है बिना इसके किसी भी शोध में प्रमाणिकता नहीं आ सकती है। विषयों मंे व्यापकता बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि विज्ञान में शोध हेतु विषयों की व्यापकता है किन्तु वह हिन्दी में नहीं है जिसके कारण आम जनमानस के बीच उपस्थित नहीं है।     प्रो0 दुबे ने कहा कि सोच समझकर लिखना चाहिए नहीं तो शब्दों का गलत अर्थ वाक्य को गलत कर देगा। देश में 90 प्रतिशत लोग हिन्दी जानते हैं फिर भी हम भरोसा अमेरिका पर करते हैं यह दुखद है। उन्होंने कहा कि विज्ञान में विषयों की भरमार है जिससे शोधार्थी को विषय के चयन में सहजता रहती है और शोध करने मंे किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती। उन्होंने कहा कि शोध पत्र मंे सारांश जरूरी है क्यांेकि सारांश में श

विज्ञान और हिन्दी के सामन्जस्य से ही आम व्यक्ति का विकास संभव

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                                           लखनऊ : 18 अगस्त, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की ‘‘उत्कृष्ट केन्द्र योजना’’ के अंतर्गत दो दिवसीय ‘हिन्दी में विज्ञान लेखन’ कार्यशाला का उद्घाटन आज ए0पी0 सेन सभागार मंे हुआ।     कार्यशाला का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। अतिथियों का स्वागत हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो0 कैलाश देवी सिंह ने पुष्पगुच्छ देकर किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 हेमांशु सेन ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डाॅ0 रविकान्त ने किया।     उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 मनोज कुमार मिश्र ने कहा कि विश्वविद्यालयों के अधिकतर छात्र हिन्दी माध्यम से होते हैं, उनके लिए हिन्दी लेखन की बहुत आवश्यकता है। प्रो0 मिश्र ने कहा कि हिन्दी के विद्यार्थी हिन्दी में ही सोचते और समझते हैं अतः आवश्यकता इस बात की है कि उन छात्रों के लिए विज्ञान की पुस्तकें हिन्दी में लिखी जाएं। उन्होंने कहा कि विज्ञान ही हमारे देश को आगे ले जायेगा। ग्रामीण क्षेत्र के बहुतेरे ऐसे छात्र हैं

हिन्दी में विज्ञान लेखन कार्यशाला कल से

अगस्त, 2012,! लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की उत्कृष्ट योजना के अन्तर्गत दिनांक 1 और 2 सितम्बर, 2012 को दो दिवसीय ‘हिन्दी में विज्ञान लेखन’ कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में किया जा रहा है। हिन्दी भाषा के माध्यम से विज्ञान लेखन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने ‘हिन्दी में विज्ञान लेखन’ कार्यशाला का आयोजन किया है। विज्ञान जीवन के हर क्षेत्र में प्रसांगिक हो गया हैं इसलिए विज्ञान की सम्यक समझ हेतु क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से विज्ञान का प्रचार-प्रसार अति आवश्यक होता जा रहा है। संस्कृति और भाषा का गहरा सम्बन्ध होता है। इसी सम्बन्ध के नाते वैज्ञानिकों की मूल सोच, परिकल्पना उनकी अपनी मात्र भाषा में ही उद्भासित होती है। तकनीकी विकास में भाषाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। विज्ञान लेखक और संचारक दोनो का दायित्व है कि विज्ञान को सरल ढ़ग से आम जनता तक ले जाएँ। विश्व में ज्ञान के व्यापीकरण हेतु विज्ञान का प्रचार-प्रसार क्षेत्रीय भाषाओं में अनिवार्य हो गया है।

हिन्दी विभाग में पी-एच0डी0 की मौखिकी सम्पन्न

दिनांक 29 अगस्त 2012। आज हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में श्री सौरभ पाल की पी-एच0डी0 मौखिकी की परीक्षा सम्पन्न हो गयी। अत्यंत कर्मठ, प्रतिभाशाली और होनहार छात्र श्री पाल ने डा0 रीता चैधरी के निर्देशन में ‘इलाचन्द जोशी के उपन्यासों में पाश्चात्य विचारधाराएँ: एक अध्ययन’ विषय पर अपना शोधकार्य सफलतापूर्वक पूर्ण किया। इसके पूर्व पाल जी ने विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से ही वर्ष 2008 में एम0फिल्0 की उपाधि प्राप्त की और ‘शम्भूनाथ की साहित्य साधना’ पर अपना लघु शोध प्रबंध पूर्ण किया था। आपके अभी तक दर्जन भर से अधिक शोध पत्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।

तुलनात्मक साहित्य औपनिवेशिक राजनीति का शिकार हुआ

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लखनऊ: 19 अगस्त, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की ‘उत्कृष्ट केन्द्र योजना’ के अन्तर्गत आयोजित दो दिवसीय शोध प्रविधि कार्यशाला के दूसरे दिन शोधार्थियों को पाठानुसंधान प्रक्रिया के अन्तर्गत वक्तव्य देते हुए पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रो0 जयप्रकाश ने कहा कि पाठानुसंधान पाठकों की भाषा वैज्ञानिक पद्धति से ही पाठ विचार कराती है। पाठ को सृजनात्मक रूप से पढ़ते हैं। पाठानुसंधान में रचनाकाल की बहुत आवश्यकता है इससे कविता का विषयवस्तु मिल जाती है। पाठ, भाषा और रूप दो बातों से मिलकर बना है।     उन्होंने कहा कि समकालीन साहित्य पर शोधपरक यात्रा समाप्त हो रही है। जो व्यक्ति जीवित होता था उसके निधन के 50 वर्ष बाद ही उसकी रचना पर शोध कार्य होता था अब वह स्थिति विलुप्त हो रही है। अब नये से नये साहित्यकारों के साहित्य और रचना पर शोध कार्य कराये जा रहे हैं। ये आजीविका प्रदायी तो है लेकिन यह अध्यापकों और शोध छात्रों के लिए बेहतर भविष्य नहीं हो सकते। पूर्व में शोध प्राचीन ग्रन्थों पर होता था जो उपाधि के लिए नहीं निर

शोध कार्य को पूर्ण करने के लिए प्रासंगिकता और प्रमाणिकता जरूरी

लखनऊ: 18 अगस्त, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा ने उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन की ‘‘उत्कृष्ट केन्द्र योजना’’ के अंतर्गत दो दिवसीय शोध प्रविधि कार्यशाला का आयोजन ए0पी0 सेन सभागार मंे हुआ।     कार्यशाला का शुभारम्भ प्रो0 रश्मि पाण्डेय, प्रो0 एस0पी0 दीक्षित, प्रो0 जय प्रकाश, प्रो0 के0डी0 सिंह ने दीप प्रज्ज्वलन कर किया। जबकि कार्यक्रम का संचालन डाॅ0 रमेश चन्द्र त्रिपाठी द्वारा किया गया।     कार्यशाला की मुख्य अतिथि कला संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो0 रश्मि पाण्डेय ने कहा कि शोध प्रविधि अध्ययन का मूल है यह एक लम्बी प्रक्रिया है। आज शोध को लेकर शोधार्थी गंभीर नहीं हैं। शोधार्थी रियल शोध पर कम ध्यान दे रहे हैं जबकि पी0एच0डी0 मंे प्रवेश के समय से ही शोध प्रविधि का प्रयोग शुरू हो  जाता है। शोधार्थियों को विषय का चयन करते समय बहुत ही सचेत रहना चाहिए क्योंकि विषय बहुत बड़ा सागर है और सागर में विष और अमृत दोनों होता है जबकि एक शोधार्थी को सिर्फ अमृत की तलाश रहती है जो समाज के लिए उपयोगी है। उन्होंने शोध कार्य पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि शोधार्थी उ

दो दिवसीय शोध प्रविधि कार्यशाला

17 अगस्त, 2012। लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा उच्च शिक्षा विभाग उत्तर प्रदेश शासन की उत्कृष्ट केन्द्र योजना के अन्तर्गत दिनांक दिनांक 18 व 19 अगस्त, 2012 को दो दिवसीय शोध प्रविधि कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के ए0पी0 सेन सभागार में किया जा रहा है।  उत्कृष्ट शोध की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए हिन्दी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने शोध प्रविधि कार्यशाला का आयोजन किया है। शोध की प्रवृत्ति वस्तुतः एक सहज प्रवृत्ति है। ज्ञान की उपासना जब से चली तब से उसके साथ ही शोध की प्रवृत्ति भी चली। शोध उच्च शिक्षा का एक महत्वपूर्ण तत्व है। विश्वविद्यालय जो ज्ञान के अधिवास माने जाते हैं उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वहां से प्रमाणिक और ऐसे उच्च गुणवत्ता वााले शोध लोग करते रहेेंगे जिसका समाज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े। पठन-पाठन और शोध का संबंध इस तरह से जुड़ा होना चाहिए कि वह विश्वविद्यालय के शैक्षणिक कार्यक्रम में प्रासंगिक भी हों।  कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य है कि प्रत्येक प्रशिक्षु शोध प्रविधि की प्रारंभिक प्रक्रिया साहित्य में सर्वे के लिए इलेक्ट्राॅनिक माध्

नाच देखावै बन्दर, माल खाय मदारी

हमारे देश के 14 वरिष्ठ मंत्रियों के खिलाफ देश की जनाता का पैसा खाने का गम्भाीर आरोप लगा है। इनका क्या होगा। हमें इनसे कौन बचायेगा - सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। सदियों की ठंढी - बुझी राख सुगबुगा उठी , मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है ; दो राह , समय के रथ का घर्घर - नाद सुनो , सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जनता ? हां , मिट्टी की अबोध मूरतें वही , जाडे - पाले की कसक सदा सहनेवाली , जब अंग - अंग में लगे सांप हो चुस रहे तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली। जनता ? हां , लंबी - बडी जीभ की वही कसम , " जनता , सचमुच ही , बडी वेदना सहती है। " " सो ठीक , मगर , आखिर , इस पर जनमत क्या है ?" ' है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है ?" मानो , जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं , जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में ; अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के जन्तर - मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में। लेकिन होता भूडोल , बवंडर उठते हैं , जन