हमारे देश के 14 वरिष्ठ मंत्रियों के खिलाफ देश की जनाता का पैसा खाने का गम्भाीर आरोप लगा है। इनका क्या होगा। हमें इनसे कौन बचायेगा - सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। सदियों की ठंढी - बुझी राख सुगबुगा उठी , मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है ; दो राह , समय के रथ का घर्घर - नाद सुनो , सिंहासन खाली करो कि जनता आती है। जनता ? हां , मिट्टी की अबोध मूरतें वही , जाडे - पाले की कसक सदा सहनेवाली , जब अंग - अंग में लगे सांप हो चुस रहे तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहनेवाली। जनता ? हां , लंबी - बडी जीभ की वही कसम , " जनता , सचमुच ही , बडी वेदना सहती है। " " सो ठीक , मगर , आखिर , इस पर जनमत क्या है ?" ' है प्रश्न गूढ़ जनता इस पर क्या कहती है ?" मानो , जनता ही फूल जिसे अहसास नहीं , जब चाहो तभी उतार सजा लो दोनों में ; अथवा कोई दूधमुंही जिसे बहलाने के जन्तर - मन्तर सीमित हों चार खिलौनों में। लेकिन होता भूडोल , बवंडर उठते हैं , जन...
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