वैचारिकता की ओर ले जाने वाले रचनाकार हैं राहुल सांकृत्यायन

राहुल सांकृत्यायन न सिर्फ हिन्दी साहित्य और भारतीय साहित्य अपितु विश्व साहित्य में मौलिक चिन्तन, सृजनशीलता एवं भविष्यद्रष्टा के रूप में जाने जाते हैं। मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए उक्त विचार जाने माने पर्यावरणविद् वरिष्ठ आचार्य और कहार पत्रिका के संपादक डाॅ0 आर0 पी0 सिंह ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा। आगे बोलते हुए प्रो0 सिंह ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन कामकाजी फलक से  वैचारिकता की ओर ले जाने वाले रचनाकार हैं। विज्ञान प्रत्यक्ष रूप से मानव समाज से जुड़ा हुआ है और साहित्य परोक्ष रूप से मानव के लिए कल्याणकारी है। उन्होंने सांकृत्यायन के कहानी संग्रह ‘वोल्गा से गंगा’ का उल्लेख करते हुए जातियों के विकास की प्रमाणिक तस्वीर प्रस्तुत की। इसके साथ ही लोक भाषा के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए जनमानस की भाषा में ही वार्तालाप करने के लिए प्रेरित किया। 
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी विभाग के समन्वयक डाॅ0 रिपु सूदन सिंह ने कहा कि भूमण्डलीकरण से उत्पन्न इस बाजारी सभ्यता के चकाचैंध में राहुल जी को याद करना विचारशून्यता, सौन्दर्य और असंवेदनशीलता के मरूस्थल में किसी शीतल जलखण्ड को पाने की तरह है। वैचारिकी की इस नकारात्मकता में जहाँ एक तरफ विचारधारा के अन्त का शंखनाद किया गया, इतिहासान्त की भी घोषणा कर दी गयी और लाभ और हानि की पूँजीवादी कलम से एक नये इतिहास संरचना की कामना की रूपरेखा तैयार की गयी, वहीं पर उम्मीदों से लवरेज, भाव से भरे, रोशनी, ज्ञान व इल्म की प्रबल इच्छा के साथ 20वीं सदी में 22वीं सदीं की परिकल्पना करने वाले, भागो नहीं दुनिया को बदलने की बात करने वाले राहुल के साहित्य की बरबस ही चर्चा करने की जरूरत महसूस हो रही है। मानव अधिकार विभाग की प्रवक्ता डा0 राशिदा अख्तर ने अपने सम्बोधन में बताया कि राहुल सांकृत्यायन पर जिनता शोध होना चाहिए था उनके विशद लेखन को देखते हुए वह आज तक नहीं हो पाया, राहुल जी से मेरा पहला साक्षात्कार अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा नामक निबंध के माध्यम से हुआ। उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्होंने आगे कहा कि वह ज्ञानार्जन के भंडार है। उनसे ज्ञान का अर्जन करके उसका परिमार्जन करना हितकर होगा। 
डा0 रियाज अहमद ने राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृतान्तों की तुलना  फारसी के विद्वान शेख सादी की पुस्तक ‘गुलिश्तां’ से करते हुए कहा कि 70 साल के जीवन काल में इतना सब कुछ लिख पाना कैसे सम्भव हुआ यह निश्चय ही शोध का विषय है। अपने जीवन काल में ज्यादातर समय वह यात्रा पर ही रहे।  यात्रा और लेखन का ऐसा अभूतपूर्व मिश्रण आज तक देखने को नहीं मिलता। डा0 अनीस अहमद ने इस अवसर पर अपने शेरो-शायरी से उपस्थित जनों को मंत्र मुग्ध कर दिया। शोध छात्र दीपेन्द्र नाथ पाठक ने कहा कि राहुल जी के लेखन को कुछ पृष्ठों में नहीं समेटा जा सकता। अपने पूरे जीवन काल में उनकी राहें बदलती रहीं, लेकिन लेखन निरन्तर चलायमान रहा। हिन्दी विभाग में अतिथि सहायक आचार्य सुश्री शिप्रा किरण ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन के साहित्य के मूल उत्स जनमानस तक पहंुचना है।  यह भाषा के माध्यम से सम्भव है, उनका साहित्य पूरे मानव सभ्यता के विकास की समझ के लिए प्रासंगिक है।  इस विकास की प्रक्रिया इतिहास को छोड़ा नहीं जा सकता है। प्राचीन एवं नवीन के मिश्रण से ही कुछ नया सृजित किया जा सकता है, जो मानव के लिए उपयोगी है। श्री राम कुमार गुप्ता निजी सचिव ने इस अवसर पर बताया कि विश्ववविद्यालय के हिन्दी विभाग में राहुल सांकृत्यायन जी का जन्म सप्ताह मनाया जाना आज (दि0 8-4-15 से 15-4-15 तक) से प्रारम्भ किया गया है। उन्होंने 150 से भी अधिक पुस्तकों की रचना की है। विषय प्रवर्तन और कार्यक्रम का संचालन करते हुए हिन्दी विभाग में अतिथि सहायक आचार्य डा0 धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि राहुल जी 24 भाषाओं के ज्ञाता और 150 से अधिक पुस्तकों के रचयिता थे। विभागीय पुस्तकालय में शीघ्र ही राहुल सांकृत्यायन की सभी पुस्तकें उपलब्ध करायी जायेंगी और छात्रों को उन पर शोध करने हेतु प्रेरित किया जायेगा। इनके अतिरिक्त डाॅ जोगेन्द्र कुमार, अंकुर सिंह, दीपक कुमार, इन्दुकुमारी, विनायक वन्दन पाठक आदि ने भी राहुल सांकृत्यायन के बारे में अपनी भावाभिव्यक्ति की।
इस अवसर पर हिन्दी विभाग के छात्र एवं छात्राओं क्रमशः अनिता, आयुषी, संगीता, संयोगिता, रितिका और संतोष  के द्वारा अभिनव प्रयोग करते हुए वोल्गा से गंगा बैंड के बैनर के तहत दहेज और कन्या भ्रूण हत्या से सम्बन्धित भावप्रदान और हदयविदारक भोजपुरी गीत शाीर्षक अरे माई जनिहे जे काखिया में धिया बिया तोरा त जन दिहे कोखिये में मार, मोरा मन ललसा बा इतने कि तोहरे सूरतिया के एक बेरी लिहती निहारी  प्रस्तुत किया । उक्त गीत से निकले श्रोताओं के आॅसुओ ने राहुत जी को सच्ची श्रद्धान्जलि व्यक्त किये। 







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